सोचता हूँ मै अक्सर कि..
सोचता हूँ मै अक्सर कि..
क्यों ये दुःख इतना दुखाते है?
क्यों ये गम इतना रुलाते है?
अकेले अकेले ही तो चलना है..
बिन सहारे के ही तो संभालना है l
जब डगर में कोई भी देना नहीं चाहता साथ..
क्यों दुआ करते है हम की डाले कोई हाथो में हाथ ??
जाना है यही इस दुनिया का दस्तूर है..
पर फिर भी क्यों लगता है कि ना जाने किस बात से मजबूर है??
मानता हूँ कि आखिर में नहीं रहता कुछ भी दरमियाँ..
सहनी ही पडती है ये बेदर्दियाँ ..!!
ऐसे ही हमे चलते जाना है ..
सभी अरमानो को, सभी ख्वाइशो को निगलते जाना है …!!
पर फिर भी ना जाने क्यों मै अक्सर सोचता हूँ कि….
क्यों ये दुःख इतना दुखते है ??
क्यों ये गम इतना रुलाते है ??