कही खो गया था राह में ..कही खो गया था चाह में ।
आस पास की ख़बर ना थी..
सुलझी अपनी डगर ना थी ।।
ख्याल लाखों मन को सतातें..
दुखों की दास्तान हमें सुनाते ।
ख़ुद पर भरोसा ही नहीं रहा था..
भीड़ के बीच में कही गिरा पड़ा था ।।
पर फिर अंधेरे में एक चमक सी दिखी..
जैसे खाली पन्नो पर किसी ने कुछ लिखावट हो लिखी।
एक हाथ बड़ा हमे उठाने को..
हिम्मत मिली प्यार जताने को ।।
धीरे धीरे सीखा हमने खड़ा होना..
रुक गए आंसू , बंद हुआ रोना ।
आज मुझमें दोड़ने का साहस आया है..
ये सब तेरी ममता ने ही तो कर दिखाया है ।।
तेरे प्यार का क़र्ज़ ना उतार सकूँगा कभी..
पर ऐ माँ !!
वादा करता हूँ निभाऊंगा अपने फ़र्ज़ सभी ।।